कुछ इस तरह संभाल के रखी हैं तेरी यादें कोई न देख पाए मेरे सिवा जैसे …. कल यकायक एक किताब के पन्ने पलटे और बिखर गए कुछ पल शैतान नन्हे बच्चों हों जैसे . पल निकले तो साथ ले आये यादों का सैलाब फिर अश्कों का क्या था , निकल पड़े वे भी एक दरिया जैसे. लगता हैं इन यादों का, इन अश्कों का साथ पुराना है एहसास होता है जैसे इनका साथ पुराना है …….
